कमलनाथ तय करें कि वे उधोगपति हैं या मुख्यमंत्री

 

राजनेताओं और उधोगपति के बीच सिर्फ एक संबंध बनाने की कवायद

मंदी के दौर में मेग्निफिसेंट टांय-टांय फिस्स ना हो 

खबर नेशन / Khabar Nation

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के अब तय करने का वक्त हो चला है कि असल में वे हैं क्या एक उधोगपति या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री । वजह इसलिए कि वैश्विक मंदी के इस दौर में मध्यप्रदेश में निवेश तलाशना और उसे अमलीजामा पहनाना पिछली सरकार के जैसे सिर्फ इवेंट्स बनकर ना रह जाए।थोड़े कड़वे शब्दों में टांय-टांय फिस्स ना हो जाए।
पिछली सरकार ने भारी भरकम खर्च कर इंवेस्टर मीट,समिट जैसे मंच सजाकर लाखों करोड़ों रुपए का एम ओ यू के माध्यम से निवेश लाने का दावा किया था। धरातल पर हजार करोड़ के निवेश नहीं आ पाए।ये वो दौर था जब वैश्र्विक मंदी के वाबजूद भारत की अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़े हुए थी। मध्यप्रदेश में स्थिर सरकार थी। वर्तमान में हालात उलटे है भारत में भरपूर मंदी का दौर है और मध्यप्रदेश में अल्पमत की सरकार है । मंदी के हालात कुछ इस कदर हैं कि पहली वजह तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें हैं, जिसका असर महंगाई दर पर पड़ा है.

- दूसरी वजह डॉलर के मुकाबले रुपये की घटती हुई कीमत है, एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 72 रुपये के आंकड़े को छू रही है.

- आयात के मुकाबले निर्यात में गिरावट से देश का राजकोषीय घाटा बढ़ा और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है.

- इसके अलावा अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर की वजह से भी दुनिया में आर्थिक मंदी का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जिसका असर भारत पर भी पड़ा है.

वैसे ये तो बाहरी वजह हैं, जो देश में आर्थिक मंदी को बढ़ावा दे रही हैं. लेकिन इसकी अंदरूनी वजह ज्यादा बड़ी हैं. जैसे कि अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों में गिरावट, डिमांड और सप्लाई के बीच लगातार कम होता अंतर और निवेश में मामूली कमी जैसी चीजें मंदी की तरफ इशारा कर रही हैं. जिसका असर अब दिखाई देने लगा है ।
 देश का ऑटो सेक्टर रिवर्स गियर में चला गया है. ऑटो इंडस्ट्री में लगातार नौ महीने से बिक्री में गिरावट दर्ज हो रही है. जुलाई में कार और मोटरसाइकिलों की बिक्री में 31 फीसदी की गिरावट आई है. जिसकी वजह से ऑटो सेक्टर से जुड़े साढ़े तीन लाख से ज्यादा कर्मचारियों की नौकरी चली गई और करीब 10 लाख नौकरियां खतरे में हैं.
- कृषि क्षेत्र के बाद सबसे ज्यादा 10 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले टेक्सटाइल सेक्टर की भी हालत खराब है. नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन ने तो बाकायदा अखबारों में विज्ञापन देकर खुलासा किया है कि देश के कपड़ा उद्योग में 34.6 फीसदी की गिरावट आई है. जिसकी वजह से 25 से 30 लाख नौकरियां जाने की आशंका है.

- इसी तरह के हालात रियल एस्टेट सेक्टर में हैं, जहां मार्च 2019 तक भारत के 30 बड़े शहरों में 12 लाख 80 हज़ार मकान बनकर तैयार हैं लेकिन उनके खरीदार नहीं मिल रहे. यानी बिल्डर जिस गति से मकान बना रहे हैं लोग उस गति से खरीद नहीं रहे.

-RBI द्वारा हाल में ही जारी आंकड़ों के मुताबिक बैंकों द्वारा उद्योगों को दिए जाने वाले कर्ज में गिरावट आई है. पेट्रोलियम, खनन, टेक्सटाइल, फर्टीलाइजर और टेलिकॉम जैसे सेक्टर्स ने कर्ज लेना कम कर दिया है.

यह मंदी की आहट का ही असर है कि अप्रैल से जून 2019 की तिमाही में सोना-चांदी के आयात में 5.3 फीसदी की कमी आई है. जबकि इसी दौरान पिछले साल इसमें 6.3 फीसदी की बढ़त देखी गई थी. निवेश और औद्योगिक उत्पादन के घटने से भारतीय शेयर बाजार में भी मंदी का असर दिख रहा है. सेंसेक्स 40 हजार का आंकड़ा छूकर अब फिर 37 हजार पर आकर अटक गया है.

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2018-19 में देश की जीडीपी विकास दर 6.8 प्रतिशत रही जो बीते 5 सालों में सबसे कम है. जिसके बाद आरबीआई ने मंदी की आहट को भांपते हुए साल 2019-20 के लिए विकास दर का अनुमान घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है.

यह वो आंकड़े हैं जो आर्थिक मंदी से देश को खबरदार करते हैं. जिसके बारे में नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने भी देश को आगाह किया और आर्थिक मंदी को लेकर सरकारी नीतियों और फैसलों को भी कटघरे में खड़ा किया है. इसी के साथ ही देश के प्रमुख उधोगपति, अर्थशास्त्री भारत में छाई मंदी को लेकर आलोचनात्मक रुख अपनाएं हुए हैं ।

रही बात मुख्यमंत्री कमलनाथ के उधोगपति और मुख्यमंत्री की भूमिका में अंतर की तो कमलनाथ स्वयं जानते हैं कि मध्यप्रदेश में डीजल पेट्रोल प्रदेश के अन्य राज्यों से मंहगा बिक रहा है । यह दौर भाजपा सरकार के समय से है । मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव पूर्व कमलनाथ ने पेट्रोल डीजल के भाव कम करने का वचन दिया था । सरकार में आते ही कमलनाथ ने प्रदेश का राजस्व बढ़ाने टैक्स बढ़ा दिया । यह फैसला कमलनाथ ने उस समय किया जब कमलनाथ मध्यप्रदेश को लॉजिस्टिक्स हब बनाने की सोच रहे हैं। मध्यप्रदेश की भौगोलिक स्थिति को देखकर पिछले  25 सालों से सरकार लॉजिस्टिक्स हब बनाने के लिए भरपूर हाथ पैर मार रही हैं लेकिन सफल नहीं हो पाईं। प्रदेश से बड़े कामर्शियल वाहन गुजरते तो है लेकिन वे डीजल नहीं लेते । जिसके कारण लगभग 35 प्रतिशत डीज़ल की बिक्री कम हो रही है । पड़ोसी राज्यों में पांच रुपए प्रति लीटर कम डीजल बिक रहा है । ऐसे ही कामर्शियल वाहनों पर परिवहन कर मध्यप्रदेश में 14 प्रतिशत और पड़ोसी राज्यों में दस प्रतिशत है जिसने वाहनों की बिक्री पर असर डाला है । इसी के साथ ही लाईफ टैक्स वसूला जा रहा है ।इस कारण से पड़ोसी राज्यों में सीमावर्ती वाहन डीलरों की सेल बढ़ गई और मध्यप्रदेश में घट गई । ये मात्र दो उदाहरण है लेकिन बड़ा असर डालने वाले हैं । हांलांकि ट्रको पर से लाइफ टैक्स वसूले जाने का प्रावधान सरकार हटाने जा रही है ऐसा सूत्रों का कहना है । जो कमलनाथ की निर्णय क्षमता को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं । 
मध्यप्रदेश से गर्व के चलते एक आम नागरिक की हैसियत से मैं चाहूंगा कि मेग्निफिसेंट आयोजन सफल रहे और प्रदेश प्रगति की दौड़ में अव्वल रहे । लेकिन सरकार इस तरह के निर्णय लेती रही तो ऐसे आयोजन महज राजनेताओं और उधोगपति के बीच सिर्फ एक संबंध बनाने की कवायद भर बनकर ना रह जाए ।

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