कोरोना वायरस : शिवराज को खतरा ?

 

अचानक आई आपदा हमेशा बनती रही शिवराज को वरदान

राजनैतिक प्रशासनिक मोर्चे सहित सामाजिक वातावरण बनाने की चुनौती

अफसरशाही के शिकंजे में , कर नहीं पा रहे भरपूर उपयोग

मंत्रिमंडल गठन में देरी से खदबदा रहा असंतोष

प्रदेश के आर्थिक हालात से जूझना भी चुनौती

एकला चलो के रोग से ग्रस्त

खबर नेशन  / Khabar Nation

विश्वव्यापी कोरोना वायरस संकट मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर भी खतरा बनकर मंडरा रहा है। हांलांकि पुराने अनुभवों और हालात का आकलन किया जाए तो शिवराज के लिए प्राकृतिक आपदाएं हमेशा वरदान बनकर सामने आती रही हैं। देखना है कि शिवराज कोरोना वायरस के संकट से निपटने में कितने सफल रह पाते हैं ?

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को शपथ लेते ही कोरोना वायरस का संकट उपहार और चुनौती के रूप में मिला है। डेढ़ साल पहले जनता द्वारा हकाली गई भाजपा सरकार को कांग्रेस की आंतरिक टूट-फूट के जिम्मेदार ग्वालियर रियासत के महराज ज्योतिरादित्य सिंधिया वरदान और अभिशाप के रूप में उपहार स्वरूप मिलें हैं। सिंधिया वरदान और अभिशाप इसलिए कि मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार बनवाने के साथ उनकी विशिष्ट योग्यताएं एक नया मुकाम दिला सकती हैं। अभिशाप इसलिए कि राजनैतिक तौर पर गैर अनुभवी ज्योतिरादित्य सिंधिया की तुनक मिजाजी ( जैसा मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार के एक राजनैतिक और प्रशासनिक तौर पर गिनें जानें वाले अनुभवी राजनेता कमलनाथ के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में संकट में डालती रही ) सरकार को संकट में डालने का काम करती रहेगी।

सिंधिया एक सौदे के तहत भाजपा में शामिल हुए हैं। भाजपा एक ऐसा राजनैतिक दल है जो दूसरी पार्टी से आए नेताओं को जल्द हाशिए पर धकेल कर अहसान उतार देती है। हाल फिलहाल इस सौदे की झलक मंत्रिमंडल गठन में देखने को मिल जाएगी । मंत्रिमंडल गठन में देरी से भाजपा नेताओं में भी असंतोष खदबदाने लगा है ।

कोरोना वायरस संकट के चलते मंत्रिमंडल गठन नहीं हो पा रहा है या जानबूझकर नहीं किया जा रहा है। सत्ता के आदी बन चुके भाजपा नेताओं को यह इंतजार रास नहीं आ रहा है। उन्हें यह पता है कि इस बार उनके हिस्से में रोटी ही आना है । बटर (मख्खन) का बड़ा हिस्सा सिंधिया गुट को समर्पित करना होगा । जिसके चलते क्षेत्रीय, जातिगत, राजनैतिक अनुभव, सामाजिक, गुटीय संतुलन बनाने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के लिए भी चुनौती के तौर पर रहेगा।

हाल फिलहाल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कोरोना वायरस के संकट को वरदान मानते हुए मध्यप्रदेश की राजनीतिक, प्रशासनिक, भौगोलिक और सामाजिक पिच पर अकेले ही बल्लेबाजी करते नजर आ रहे हैं ।जो शिवराज को संकट का सबब बन सकता है । भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं और सिंधिया गुट के कई नेताओं का राजनैतिक एवं प्रशासनिक अनुभव इस महती संकट से निपटने में अहम भूमिका निभा सकता है। शिवराज की एकला चलो की आदत मध्यप्रदेश को प्रशासनिक एवं राजनीतिक अनुभव से वंचित रख रही हैं । शिवराज की इस आदत से नाराज़ असंतुष्ट विधायक भाजपा के अपने आकाओं को अवगत करा चुके हैं। इसके बाद भी दूर दूर तक मंत्रिमंडल गठन की संभावना हाल फिलहाल नज़र नहीं आ रही है। 

प्रशासनिक मोर्चे पर शिवराज की पुरानी टीम एक बार फिर शिकंजा कसते नज़र आ रही है। शिवराज पर हमेशा अफसरशाही के हावी होने के आरोप लगते रहे हैं। कोराना वायरस संकट के चलते सरकारी दफ्तरों में सन्नाटा पसरा हुआ है। सरकारी अफसर व उनके मातहत अपने अपने घरों से बैठकर काम निपटा रहे हैं। अगर शिवराज चाहते तो इन वरिष्ठ अफसरों के विशिष्ट ग्रुप बनाकर फील्ड में उतार सकते हैं। जिसका लाभ फील्ड में पदस्थ अफसरों को उनके अनुभव के तौर पर मिल सकता है ।

कोराना वायरस संकट के दौरान बेमौसम बरसात ने किसानों की कमर तोड़ने का काम किया है।लॉकडाउन के दौरान किसानों की फसलें खेत में ही रह गई। अधिसंख्य किसानों को बड़ा नुक़सान उठाना पड़ा है। इसी के साथ ही प्रदेश में लॉकडाउन का एक जैसा असर औधोगिक और व्यावसायिक संस्थानों पर पड़ेगा ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है। अगर लॉकडाउन अवधि बढ़ाई भी नहीं जाती है तब भी प्रदेश के हालात सामान्य होने में छह से सात माह लगने की संभावना है। आर्थिक तौर पर ठप्प पड़ी गतिविधियां सामाजिक वातावरण को असामान्य बना सकती हैं। जिससे जूझना भी शिवराज के लिए एक बड़ी चुनौती रहेगी ।

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