चंबल में कांग्रेस का खैवेया कौन ?

 

सिंधिया के बाद अब चंबल में कौन ?

कांग्रेस को संभाग स्तर पर नेतृत्व उभारने की जरूरत 

ठाकुर-ब्राह्मण-ओबीसी किसके हाथ लगेगी बाजी ?

नाज़नीन नकवी /खबर नेशन / Khabar Nation

मध्यप्रदेश में कांग्रेस को जमीनी स्तर तक एक बार फिर मजबूत करने की जरूरत है । कांग्रेस की पुरानी परंपराओं के अनुसार अब क्षत्रप नहीं संभागीय स्तर पर बड़ा फेस तैयार करना होगा। सबसे पहले कांग्रेस को चंबल ग्वालियर संभाग में ऐसा नेतृत्व खड़ा करने की जरूरत है। 
गौरतलब है कि ग्वालियर चंबल संभाग सहित मध्यप्रदेश के की जिलों में लंबे समय तक कांग्रेस और भाजपा में सिंधिया राजघराने का वर्चस्व रहा है । 2020 के बाद कांग्रेस का बड़ा चेहरा रहे केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भारतीय जनता पार्टी में हैं। विधानसभा चुनाव में लगभग डेढ़ साल का समय बचा है। समय रहते कांग्रेस ने अगर इस खालीपन को भरने का प्रयास नहीं किया तो कांग्रेस भाजपा को वॉक ओवर देकर बिना लड़े हार स्वीकार कर लेगी।

राजनीति में सियासी दलों को अपनी जड़ें जमाये रखना बेहद जरूरी होता है। उतना ही जरूरी है उसका जनता से जुड़ाव भी। कभी सियासत में सबसे मजबूत दिखने वाले पंजे की पकड़ से फिलहाल ये दोनों चीजें ढीली या यूं कहे कि छूटती मालूम पड़ रही है। हालिया हुए विस चुनाव की ओर नजर घुमाए और इस पर विश्लेषण करें तो एक ही बात दिखाई देती है। जो कांग्रेस की नैया डुबाने के कारण रहे। अंदरूनी कलह .. गुटबाजी .. नेताओं का अहम से बाहर न आना। कार्य़कर्ताओं की अनदेखी भी इसमें एक बड़ी वजह रही जिसका नतीजा हार के रुप में कांग्रेस के सामने आया। लेकिन अब आगामी विस चुनाव को लेकर कांग्रेस हार से सबक लेकर फिर से मैदान में मोर्चा संभालेगी।

मध्य प्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू
एमपी कांग्रेस 2018 विस चुनाव के नतीजों को दोहराने के लिए बेताब है। इसके लिए जमीनी स्तर पर कमर कस के तैयारी भी शुरू हो गई है। वही भाजपा भी पिछली बार की तुलना में अपना प्रदर्शन बेहतर करना चाहती है। ऐसे में दोनों दलों की नजर एक-एक अंचल पर है। मालवा में अरुण यादव, जीतू पटवारी सरीखे नेता एक्टिव दिखाई पड़ते हैं तो वही विंध्य में राहुल भैया जमीन को मजबूत करने की तैयारी में हैं।  बात ग्वालियर चंबल की करें तो यहां कांग्रेस से चेहरा कौन होगा ये सवाल है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ग्वालियर-चंबल अंचल में शानदार प्रदर्शन किया था... लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद इस अंचल के सभी समीकरण बदल गए हैं।

सिंधिया ने छोड़ा ‘हाथ’ अब कौन देगा साथ ? 
बीजेपी में शामिल होने से पहले तक ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस के स्थापित नेता थे.. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष भी बनाया था। सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस ने ग्वालियर-चंबल अंचल की ज्यादातर सीटें जीती थी। लेकिन कांग्रेस के सामने अब मुश्किल यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने के बाद उनके पास अंचल में कोई बड़ा चेहरा नहीं है। ऐसे में इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से ग्वालियर-चंबल अंचल में सिंधिया की जगह कौन सा नेता लेगा।
ग्वालियर चंबल अंचल के किस नेता पर दांव 
सियासी पंडितों की माने तो कांग्रेस को अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए किसी जमीन से जुड़े नेता को सामने लाने होगा। चेहरा ऐसा हो जिसकी स्वीकार्यता कार्य़कर्ताओं के बीच हो। यूं तो कांग्रेस के पास ग्वालियर चंबल अंचल में ऐसे कई नेता हैं जो सिंधिया की जगह ले सकते हैं । कांग्रेस के कद्दावर विधायक डॉक्टर गोविंद सिंह, पूर्व मंत्री लाखन सिंह, पूर्व मंत्री केपी सिंह और युवा चेहरे जयवर्धन सिंह , ब्राह्मण चेहरे के तौर पर चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी , ओ बी सी के तौर पर अशोक सिंह , रामनिवास रावत ग्वालियर-चंबल संभाग से आते हैं, लेकिन अब तक कांग्रेस में इस तरह का सामंजस्य नहीं बन पाया है कि किसी एक के चेहरे पर कांग्रेस यहां आगे बढ़े
ग्वालियर - चंबल अंचल जरूरी क्यों ? 
ग्वालियर-चंबल अंचल मध्य प्रदेश की राजनीति में बेहद अहम माना जाता है।  ग्वालियर-चंबल में कुल 8 जिले आते हैं, जिनमें विधानसभा की 34 सीटें शामिल हैं। ऐसे में जो भी राजनीतिक दल इन विधानसभा सीटों में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतता है। उसके सरकार बनने के चांस ज्यादा होते हैं। बात अगर 2018 के विधानसभा चुनाव की जाए तो यहां की 34 सीटों में से कांग्रेस ने 26 सीटें जीती थी । जबकि 7 सीट बीजेपी को मिली थी, जबकि एक सीट बीएसपी के खाते में गई थी।   सिंधिया के बीजेपी में जाने से कांग्रेस के ज्यादातर विधायकों ने पाला बदल लिया, जिससे यहां की अधिकतर सीटों पर उपचुनाव हुए जिनमें बीजेपी और कांग्रेस का प्रदर्शन मिला जुला रहा।  यही वजह है कि अगले साल होनेवाले चुनाव में ग्वालियर चंबल अंचल के नतीजों पर सभी की निगाहें टिकी होंगी...

सिंधिया के वर्चस्व को चुनौती देना कठिन नहीं

कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति पर गंभीरता के साथ नजर रखने वाले एक वरिष्ठ नेता का मानना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के वर्चस्व को चुनौती देना कठिन नहीं है । यह बात जितनी सच है कि ग्वालियर चंबल में सिंधिया खानदान का भरपूर असर है। उतना ही सिंधिया खानदान के खिलाफ गली गली में विरोध करने वालों की तादाद भी अच्छी खासी है। बस ऐसे लोगों के सामने मजबूत नेतृत्व खड़ा करने की जरूरत है। उक्त नेता ने कहा कि भाजपा की विचारधारा को समर्पित रहने वाले  मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग सिंधिया के विरोध के चलते आगामी विधानसभा चुनाव में या तो साइलेंट रह सकता है या फिर विरोध में मतदान भी कर सकता है। जरुरत है अच्छा और सक्षम नेतृत्व सामने लाया जाए।

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