मुख्यमंत्री कमलनाथ को  सपने दिखाए जा रहे हैं

त्वरित टिप्पणी

*बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय  

जब प्रशासन-पुलिस देखे स्वयं को तो उनसे बुरा ना कोय 

हेमेन्द्र तिवारी

उज्जैन। जिला प्रशासन की दिनों-दिन बदस्तूर यही स्थिति निर्मित होती चली जा रही है ख्वाब तो बड़े-बड़े देखें और दिखाए जा रहे हैं पर जब उसे सैद्धांतिक रूप में अमलीजामा पहनाने का अवसर आता है तो टाय-टाय फिस्स हो जाती है। 

भगवान महाकालेश्वर मंदिर की 300 करोड़ रुपए से क्रियान्वित होने वाली विकास और सौंदर्यीकरण की बैठक और कभी समाप्त न होने वाली प्लास्टिक बोतलों  की गंदगी टेबल पर इसे क्या कहा जाये ?

वहां रे प्रशासन चलाने वाले अधिकारियों तुम्हारी भी क्या माया है जिसे जैसा तुमनें चाहा वैसा नचाया है।

प्रदेश संभाग और जिले में  पर्यावरण प्रेम का स्वांग करने और ढिंढोरा पीटने में अव्वल रहने वाले अधिकारियो और कर्मचारियो आप सभी महानुभावों को देख कर ऐसा लग रहा था  जैसे महाकालेश्वर मंदिर के सौंदर्यीकरण और विकास की प्रारंभिक बैठक में *पर्यावरण और प्रकृति* का चीरहरण हो रहा हो और भीष्म द्रोण कृपाचार्य व पांडवों जैसे सामर्थ्य शाली वरिष्ठ अधिकारी और मंत्री 

वहाँ बैठे हुए ये सब देख रहे हो!

 ये कैसे क्रियान्वयन करवा पाएंगे मुख्यमंत्री कमलनाथ  की महाकालेश्वर को लेकर बनाई जा रही इस महत्वाकांक्षी योजना का जबकि ये चंद चाटुकारो को उपकृत कर अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वाले प्रशासनिक अधिकारियों का बेड़ा पूरे उज्जैन को चारागाह में तब्दील कर चुके है।

 शिखण्डी बना अधिकारियों का हुजूम यत्र-तत्र सर्वत्र जहां देखो वहाँ चौपाये मानवीय जीवन के लिए खतरा बने हुए खड़े हैं पर गांधारी बन चुके इस जिला प्रशासन नगर पालिक निगम और पुलिस उज्जैन के अधिकारियों को जब ये चौपाये नहीं दिख रहे हैं... पट्टी जो बांध रखी है।

...तो ये मुख्यमंत्री कमलनाथ की 300 करोड़ रुपए की महाकाल सौंदर्यीकरण और विकास की योजना पर भी पलीता ही लगाएंगे!

अरे बक्शों कम से कम भगवान महाकालेश्वर को ही तो बख्श दो उनके नाम पर  विकास और सौंदर्यीकरण की बात और कभी ना समाप्त होने वाली प्लास्टिक की गंदगी टेबल पर यह कैसी बैठक थी मेरे प्यारों और तुम्हारा यह कैसा विजन है?

पूरे शहर का यातायात चौपट हुआ पड़ा है चाहे तो नए शहर  मैं देख लो और चाहो तो  पुराने शहर में देख लो स्वच्छता के नाम का ढिंढोरा पीटने वालों को गंदगी अतिक्रमण और चौराहें-२पर बिकता अभक्ष्य शहर की बदहाल हो चुकी चौपट यातायात व्यवस्था तो अब तक ये दुरुस्त कर नहीं पा रहे है स्वयं की टेबल पर रखे प्लास्टिक की गंदगी तो इन्हें दिखती नहीं और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को  सपने दिखाए जा रहे हैं। 

...अब खैर खाँ-मो-खाँ इस अवसर पर और क्या लिखूं मैं कहेंगे की कालिख पोत दी है पर क्या करूं यह मेरी मजबूरी है और लिखना भी जरूरी है शायद इनकी खुली हुई आंखें और खुल जाए तो खुली होकर बंद होने का वर्षो से चल रहा नाटक बन्द हो जाये!

 हमारा क्या हम तो यूं ही जो देख रहे हैं उसे देखते रहेंगे 

पर इन 

*बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर* को जरूर कहेंगे कि चाटुकार नहीँ वरन 

*निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय* 

*बिन पानी बिन सामना निर्मल करे सुहाय*

 

 

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