यदि आप यह खा रहे हैं तो बीमारी होना तय है ...

संडे क्लीनिंग

खबरनेशन / Khabarnation

पंकज शुक्ला
 

इन दिनों ‘डिटॉक्‍स’ शब्‍द का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है, मगर शरीर को शोधन की व्‍यवस्‍था तो हमारी पारंपरिक चिकित्‍सा का मुख्‍य अंग रहा है। पंचकर्म तो शोधन चिकित्‍सा ही है। शरीर को शोधन किया जाए तो बीमारी होगी ही नहीं और जब बीमारी नहीं होगी तो शमन चिकित्‍सा यानि दवाइयों का उपयोग कर बीमारी के उपचार की आवश्‍यकता ही नहीं होगी। आयुर्वेद शास्‍त्रों में शोधन चिकित्‍सा के विस्‍तृत उल्‍लेख के साथ ऐसे आहार के बारे में भी बताया गया है जिसके न खाने से शोधन की आवश्‍यकता नहीं होती। इसे विरूद्ध आहार कहते हैं। यानि यदि आप विरूद्ध आहार करते हैं तो शरीर को शोधन की आवश्‍यकता पड़ती है। यदि शोधन न किया जाए तो शरीर में टॉक्सिन्‍स जमा होते हैं जो हमारी बीमारी या कष्‍ट का कारण बनते हैं। इसलिए, यथासंभव विरूद्ध आहार से बचना चाहिए। यदि विरूद्ध आहार करते ही हैं तो उसके शोधन की प्रक्रिया अपनानी चाहिए। विरूद्ध आहार हर व्‍यक्ति की प्रकृति और देशकाल के अनुसार अलग-अलग होता है।

हमारे भोजन में 9 गुण होते हैं। वर्ण, प्रसाद, सुखम, संतुष्टि, सौस्वरयम, पुष्टि, प्रतिभा, मेध, बल का समन्वय, सामंजस्य और पूर्ति हो तो एक संतुलित आहार बनता है। जिस भोजन में इन गुणों का विरोध पाया जाए तो उसे विरुद्ध आहार कहा जाता है। इन विरोध के कारण रुचिकर दिखने वाला भोजन भी शरीर का संतुलन बिगाड़ देता है। भोजन देश, काल, अग्नि, मात्रा, सात्‍म्‍य, दोष आदि रूपों में विरूद्ध होता है।

जैसे : सूखे प्रदेशों में सूखे या तीखे पदार्थों का सेवन अथवा जलीय क्षेत्रों में चिकनाई -युक्त भोजन का सेवन करना देश विरुद्ध आहार कहलाएगा। शीतकाल में ठंडी वस्तुएँ खाना और गर्मी के दिनों में तीखे-कशाय भोजन का सेवन काल विरूद्ध आहार है। जठराग्नि मंद होने पर गरिष्ठ भोजन करना या अग्नि विरुद्ध आहार कहलाता है। दोष को बढ़ाने वाले आहार को करना दोष विरुद्ध होगा। कई प्रकार के भोजन को अनुचित ढंग से पकाना भी विरूद्ध आहार है। जैसे, दही अथवा शहद को अगर गर्म कर लिया जाए तो ये पुष्टिदायक नहीं रहते है और घातक विषैले बन जाते हैं। जिन चीज़ों की तासीर गर्म होती है उन्हें ठंडी तासीर की चीज़ों के साथ लेना वीर्य विरुद्ध आहार है। थकावट के बाद वात बढ़ने वाला भोजन लेना अवस्था विरुद्ध आहार है। दूध के साथ अम्लीय (खट्टे) पदार्थों का सेवन भी विरूद्ध आहार है।

विरूद्ध आहार सेवन से प्रमुख रूप से चर्म रोग, पेट में कष्‍ट, खून की कमी (अनेमिया), शरीर पर सफेद चकत्ते आदि रोग हो जाते हैं। ऐसे में रोगों की चिकित्‍सा तो की जाती है मगर विरूद्ध आहार का परहेज या शोधन नहीं किया जाता है। इन रोगों की पुनरावृत्ति रोकनी है तो शोधन चिकित्‍सा करवानी चाहिए। कुछ विरूद्ध आहार हम प्रतिदिन कर रहे हैं और हमें तुरंत इसका विपरीत प्रभाव दिखाई नहीं देता है। मगर, यह कह कर विरूद्ध आहार के दुष्‍प्रभाव को खारिज नहीं किया जा सकता है कि हम तो अब तक खाते आ रहे हैं, हमें तो कुछ न हुआ। ये विरूद्ध आहार समय के साथ असर जरूर दिखाते हैं, फिर चाहे विरूद्ध आहार को उन बीमारियों के कारण माने या न मानें। दक्षिण भारत में सफेद दाग अधिक होना विरूद्ध आहार का प्रमुख उदाहरण है। अधिक परिश्रम करनेवाले व्यक्तियों के लिए रुखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थ, अल्‍प भोजन तथा बैठे-बैठे काम करनेवाले व्यक्तियों के लिए चिकने, मीठे, कफवर्धक पदार्थ व अधिक भोजन अवस्थाविरुद्ध है। अधकच्चा, अधिक पका हुआ, जला हुआ, बार-बार गर्म किया गया, उच्च तापमान पर पकाया गया,  अति ठंडे तापमान में रखा गया भोजन पाकविरुद्ध है।

सामान्‍य तौर पर विरूद्ध आहार के उदाहरण निम्‍न हैं :

  • सलाद को मुख्य आहार के बाद खाना।
  • चाय के बाद ठंडे पानी का सेवन करना।
  • दूध के साथ फल, खट्टे पदार्थ, नमकीन पदार्थों, कटहल, मछली, प्‍याज का सेवन।
  • केले के साथ दही या लस्सी लेना।
  • चिकन के साथ दही का सेवन।
  • तांबे के बर्तन में घी रखना।
  • मूली के साथ गुड़ खाना।
  • मछली के साथ गुड़ खाना या दूध पीना।
  • तिल के साथ कांजी का सेवन।
  • शहद को कभी भी गर्म नहीं करना चाहिए। घी के साथ समान मात्रा में शहद विष के समान है।
  • आहार के तुरंत बाद चाय पीना विरूद्ध आहार है।
  • उड़द की दाल के साथ दही का सेवन करना।
  • पनीर और अंडा एकसाथ खाना भी विरूद्ध आहार है।
  • गर्म चाय या काफी पीने के तुरंत बाद ठंडा खा लेना।
  • एक ही तेल को बार-बार गर्म कर खाद्य पदार्थ तलना या पकाना।

 

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लेखक मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र सुबह सवेरे के रेसीडेन्ट एडिटर हैं।
 

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