चुनौती है वृद्धावस्था में स्वस्थ रहना

संडे क्लीनिंग

खबरनेशन / Khabarnation

पंकज शुक्ला

स्वस्थ रहते हुए वृद्ध होने यानि “हैंल्दी एजिंग” की आवधारण को पहली बार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने परिभाषित किया था। असल में, जन्म के साथ ही वृद्धावस्था की उल्टी गिनती शुरू हो जाती हैं। शरीर युवावस्था तक विकसित होता हैं और युवावस्था के उपरांत शरीर का क्षय शुरू हो जाता हैं। हमारे अंग भी आयु के साथ कार्यक्षमता खोने लगते हैं। विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान की तरक्की के साथ ही हमारी औसत आयु में भी वृद्धि हो गई हैं। ऐसे में वैलनेस कार्यक्रम का एक लक्ष्य स्वस्थ बने रहते हुए वृद्ध होने भी हैं। यह सुनिश्चित करना परिवार के हर सदस्य की जिम्मेदारी हैं कि वृद्ध लोग जितना संभव हैं, स्वस्थ रह सकें।

आमतौर पर वृद्धों में डायबिटीज, कोरोनरी धमनी रोग, मस्तिष्क के स्ट्रोक तथा संघातों जैसी वृद्धावस्था की बीमारियों का शिकार होने का खतरा होता हैं। अनेकों वृद्धों को एक से ज्यादा रोग होते हैं और वे उन सब का लिए दवाएँ लेते हैं । ये दवाएँ परस्पर अंतक्रिया करती हैं और कभी-कभी हानिकारक प्रभाव पैदा करती हैं । इस खतरे के प्रति सभी वृद्धों व उनके परिचारकों को सचेत होना चाहिए । 

उम्र का यूँ होता हैं असर

उम्र बढ़ने के साथ वृद्धों  की जीवन शैली में बदलाव आ जाते हैं ।  जरावस्था में स्वाद के लिए जिम्मेदार जीभ की स्वाद कलिकाएँ कमजोर हो जाती हैं । इससे खाने की पसंद पर बहुत असर पड़ता हैं । आम तौर पर मीठा खाने की गहरी इच्छा होने लगती हैं । वृद्ध व्यक्तियों को इन परिवर्तनों के प्रति सचेत रहना चाहिए और अपने आहार पर नियंत्रण रखना चाहिए ।

दांतों का गिरना वृद्धावस्था की एक आम विशिष्टता हैं। नकली दांत लगवाने के बाद भी खाने की आदतों में काफी बदलाव आ जाता हैं, क्योंकि चबाना मुश्किल हो जाता हैं । इसलिए, वृद्ध लोग मुलायम या कुचला खाना व तरल ज्यादा पसंद करते हैं । इससे अक्सर पौष्टिकता की कमियां पैदा हो जाती हैं ।
 

वृद्धावस्था में गेस्ट्रो – इंटेस्टाइल यानि पाचन तंत्र में काफी बदलाव आते हैं। उदाहरण के लिए, उदर पहले के मुकाबले आकार में छोटा हो जाता हैं । भोजन को ड्यूडेनम में पहुँचाने में अधिक समय लगता हैं । इससे पेट में एक भारीपन का अहसास होता हैं । आंतो की दीवारों क्षयग्रस्त और कमजोर हो जाती हैं इससे उनमें से भोजन बहुत धीमी गति से गुजरता हैं (लेजी इंटेस्टेइन) पाचन करने वाले इन्जाइम कम मात्रा में पैदा होने लगते हैं । इसके अलावा, आधा पचा भोजन आंतों में ज्यादा देर तक बना रहता हैं । इससे गैस बनने लगती हैं और कब्ज होता हैं।

गुर्दे आकार में छोटे हो जाते हैं और शरीर से अवांछित अपशिष्ट पदार्थों को छान कर बाहर करने में उनकी क्षमता कमजोर हो जाती हैं । इसलिए, तरलों का सेवन अधिक मात्रा में दिया जाना चाहिए ताकि अधिक पेशाब आए और इस तरह तंत्र साफ हो जाए । मूत्राशय भी सिकुड़ जाता हैं और इससे बार- बार पेशाब करने की इच्छा होने लगती हैं । मूत्राशय  के पूरा भरे होने या छींकने और हंसने से मूत्राशय पर दबाव पड़ने के कारण के कारण अनचाहे में मूत्र अनियंत्रण या यूरीनेरी इन्कौन्तिनेंसे के नाम जाना जाता हैं ।

वृद्धावस्था में शरीर में पानी का संतुलन भी बिगड़ जाता हैं। एक वृद्ध व्यक्ति के शरीर में केवल 55 प्रतिशत पानी होता हैं, जबकि एक वयस्क युवा शरीर में पानी 75 प्रतिशत तक होता हैं । वृद्ध व्यक्ति के शरीर में पहले ही पानी की कमी हो चुकी होती हैं । इसलिए, उन्हें उच्च ताप और लू का खतरा ज्यादा होता हैं। सो, एक वृद्ध व्यक्ति के लिए अधिक से अधिक तरल पीना जरूरी हो जाता हैं । सामान्य नियम के अनुसार दिन में कमसे कम 8 गिलास पानी पीना चाहिए। यह भी याद रखना चाहिए की वृद्ध व्यक्ति के शरीर में पानी के कमी के बावजूद, मस्तिष्क के पिपासा – केंद्र के क्षयग्रस्त होते जाने के कारण उसे प्यास कम होने लगती हैं ।

रक्तवाहिकाएं सख्त हो जाती हैं और अक्सर उनकी दीवारों पर ठोस पदार्थ, अधिकांशत: कोलेस्ट्रोल, जमा हो जाता हैं । इससे वे खुरदरी और सख्त हो जाती हैं दिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं इससे उनकी समूचे शरीर में रक्त धकेलने की क्षमता कम हो जाती हैं । परिणामस्वरुप, शरीर के ज्यादातर अंगों को पर्याप्त मात्रा में रक्त- आपूर्ति नहीं हो पाती । इसलिए, शरीर में पर्याप्त रक्त- आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए शारीरिक गतिवधि को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं ।

उम्र बढ़ने के साथ शरीर की मांसपेशियां धीरे- धीरे कमजोर होती जाती हैं, खासकर वे छोटी मांसपेशियां जिनकी जरूरत तेज रिप्लेक्स एक्शन यानी फौरन शारीरिक प्रतिक्रिया करने के लिए होती हैं। वृद्ध लोग सामान्य कामकाज और उन गतिविधियों को करने में समर्थ होते हैं जिनमें टांगों व बाजुओं की बड़ी मांसपेशियों के जरूरत पड़ती हैं । लेकिन, जब तेजी से हरकत में आने की बात होती हैं, तो वे ऐसा नहीं कर पाते, क्योंकि तेज रिफ्लेक्स चेष्टाओं में छोटी मांसपेशियों की जरूरत होती हैं। तेज गति से काम करने  की कोशिश करने पर उनके साथ दुर्घटना भी घटित हो सकती हैं । सबसे आम दुर्घटना हैं, बाथरूम के गीले और फिसल कर गिर जाना, क्योंकि वे मांसपेशियों को तुरंत एक्शन के लिए तैयार नहीं कर पाते और गिर जाते हैं। 

कुछ सरल उपाय याद रखें

थोड़ा व्यायाम भी जरूरी

शारीरिक गतिविधि से हृदय रोग, स्ट्रोक, कार्डियोवैस्क्यूलर रोग, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज टाइप – 2, कोलोन के कैंसर और ओस्टोयोपोरोसीस जैसे रोगों के खतरे को कम कर सकती हैं । यह मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार लाने में सहायक होती हैं । जोड़ो में होने वाले दर्द में राहत देती हैं । मांसपेशियों की शक्ति को बढ़ा कर गिरने से लगने वाली चोटों को रोक सकती हैं । वजन घटाने में मददगार होती हैं। वृद्ध लोगों के अधिकतम स्वास्थ्य लाभ के लिए, सप्ताह में 5 दिनों तक कम से कम 30 मिनट की कोई सामान्य शारीरिक गतिविधि आवश्यक हैं ।
 

उपयुक्त आहार दवाई से बड़ा इलाज

वृद्धों के लिए पौष्टिक भोजन भी बहुत जरूरी हैं। उम्र बढ़ने के साथ स्वास्थ्यवर्धक व विविधतापूर्ण आहार द्वारा प्रदान किए जाने वाले पौष्टिक तत्वों की जरूरत भी बढ़ती चली जाती हैं। वृद्धावस्था में भोजन को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। आसानी से पचने वाली चीजों के उपयुक्त भोजन तथा पर्याप्त मात्रा में रेशेदार भोजन से आंते सक्रिय होंगी और पाचन संबंधी शिकायतें दूर हो जाएंगी ।

इन बातों को याद रखिये


- घूमना या व्यायाम करना जैसी शारीरिक गतिविधियाँ वृद्धावस्था में नहीं, बल्कि काफी पहले शुरू कर देनी चाहिए। 

- नियमित दिनचर्या अपनाएं। उपचार से बेहतर हैं परहेज। नियमित स्वास्थ्य जाँच कराएँ ।

- पर्याप्त नींद लें। मेडिटेशन यानी ध्यान करें। ऐसा व्यायाम करें जो थकाए नहीं । 

- वृद्धावस्था में कम से कम 5-6 घंटों की नींद की आवश्यकता होती हैं। दोपहर में सोने का त्याग और देर रात्रि तक सक्रिय रहना बंद करने से रात्रि में बढ़िया नींद लाने में मदद मिलती हैं। दोपहर में घंटों सोने के मुकाबले 20 मिनट की झपकी लेना बेहतर होता हैं।

- आहार में सब्जियाँ, फल, साबुत-अनाज, कम वसायुक्त दूध/पनीर, और कम तेल युक्त लीन मीट होना चाहिए। फल, जिनमें सूखे मेवे भी हैं, और सब्जियाँ; विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट प्रदान करते हैं, जिनसे सामान्यतया शरीर की क्षति और क्षय से मुकाबले में मदद मिलती हैं।शारीरिक चोटों से बचने के लिए अपनी हड्डियों के स्वास्थ्य हेतु सूर्य से प्राप्त होने वाला विटामिन-डी और कैल्शियम से समृद्ध आहार जरूरी हैं।

- रेशे का उच्च मात्रा में सेवन कब्ज दूर करता हैं और कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करता हैं।

- गुर्दे की कार्यक्षमता को बढ़िया बनाए रखने के लिए प्रोटीन का सेवन सीमित मात्रा में करना चाहिए।

- सफ़ेद रंग के पदार्थों जैसे रिफाइंड शक्कर, नमक, और मैदा से परहेज करें।

- नींद के दौरान बार-बार मूत्रत्याग से बचने और इसके कारण नींद में होने वाली बाधा को दूर करने के लिए सोने से कुछ देर पहले दूध या जूस जैसे तरल पदार्थों का सेवन ना करें।

 

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