मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग द्वारा​​​​​​​ पांच मामलों में संज्ञान 

खबर नेशन / Khabar Nation 

अपराध बर्बरतापूर्ण हो सकता है, दण्ड नहीं

पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सुश्री ऊषा ठाकुर के बयान पर मप्र मानव अधिकार आयोग ने लिया संज्ञान

मुख्य सचिव से 15 दिन में मांगा जवाब

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने मप्र शासन की पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सुश्री ऊषा ठाकुर द्वारा दिये गये उस बयान पर संज्ञान लिया है जिसमें उन्होंने दुष्कर्मियों को बीच चैराहे पर लटकाकर फांसी देने और मानव अधिकार आयोग के बारे में अनुचित टिप्पणी की है। आयोग ने कुछ दैनिक समाचार पत्रों के 14 व 15 नवम्बर के अंक में प्रकाशित उन खबरों पर संज्ञान लिया है, जिसमें पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सुश्री ठाकुर द्वारा बीते रविवार (13 नवम्बर) को इंदौर जिले के डा. अम्बेडकर नगर (महू) में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में दुष्कर्मियों को बीच चैराहे पर लटकाकर फांसी दिये जाने और उन्हें ऐसे लटके हुए छोड़कर उनका अंतिम संस्कार भी न किये जाने और उनके शव को चील कौएं नोचकर खाएं जैसी टिप्पणी करने के साथ ही यह भी कहा गया कि ऐसे दुष्कर्मियों के कोई मानव अधिकार नहीं होते हैं और यदि मानव अधिकार आयोग हस्तक्षेप करे, तो उसकी कोई चिन्ता न करे।

मप्र मानव अधिकार आयोग के माननीय सदस्य मनोहर ममतानी ने पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री के उपरोक्त कथन पर संज्ञान लेकर मुख्य सचिव, मप्र शासन से 15 दिन में जवाब मांगा है। आयोग सदस्य ने यह भी कहा है कि प्रतिवेदन राज्य शासन के किसी जिम्मेदार अधिकारी के जरिये ही दें, जिससे शासन की गंभीरता पर भी विचार किया जा सके।

आयोग ने यह पाया कि शासन में मंत्री स्तर के सम्मानजनक पद पर रहते हुये मंत्री सुश्री ठाकुर द्वारा भारतीय संविधान की मूल भावना और मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु गठित मानव अधिकार आयोग जैसी संस्था के विरूद्ध दिया गया बयान अनुचित एवं आपत्तिजनक है। मंत्री सुश्री ठाकुर द्वारा ऐसे पद पर संवैधानिक शपथ लेकर ही कार्य किया जा रहा है और शपथ में स्पष्ट है कि वे विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची सत्यनिष्ठा रखेंगी और सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि अनुसार न्याय करेंगी। आयोग ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के विधि दृष्टांतों और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 में उल्लेखित प्रावधानों का उल्लेख कर कहा है कि सभी को मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। बंदियों के भी मौलिक अधिकार होते हैं। दुष्कर्मियों को फांसी की सजा देते हुए बीच चैराहे पर लटका दिये जाने और उनका अंतिम संस्कार भी न होने देने, उनको फांसी पर टंगे-टंगे चील कौऐं खायें, यह कथन दण्ड को बर्बरतापूर्ण बनाता है।

आयोग ने दुष्कर्मियों को सार्वजनिक स्थल पर लटकाकर फांसी दिये जाने के बयान के परिप्रेक्ष्य में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा विधि दृष्टांत अटार्नी जनरल ऑफ इण्डिया विरूद्ध लछमा देवी एवं अन्य, एआईआर 1986 सुप्रीम कोर्ट पेज 467 में दिये गये आदेश का उल्लेख करते हुये कहा है कि ऐसा करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 का उल्लंघन होगा और इस प्रकार से फांसी को लोक स्थान में दिये जाने को सभ्य समाज में मान्य नहीं किया जा सकता है। यदि ऐसी कोई विधि/नियम बनाये भी जायें, तो वे भी अनुच्छेद-21 का उल्लंघन करने वाले होगें और मान्य नहीं हो सकेंगे। मप्र मानव जेल नियमों के अनुसार भी फांसी के समस्त दण्ड जेल के भीतर बिलकुल सुबह ही किये जायेंगे। यह वैधानिक प्रावधान फांसी की सजा को लोक स्थान पर करने को प्रतिबंधित करता है।

आयोग ने मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए स्थापित वैधानिक संस्थाओं राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग और राज्य मानव अधिकार आयोग के संबंध में मंत्री सुश्री ठाकुर द्वारा मानव अधिकार आयोग के विरूद्ध दिये बयान को अनुचित और अप्रासंगिक टिप्पणी पाकर कहा है कि एक लोकसेवक से ऐसा कथन अपेक्षित नहीं है। आयोग ने मध्यप्रदेश शासन के मुख्य सचिव को प्रकरण की जांच कराकर सार्वजनिक पद पर पदस्थ रहते शासन की मंत्री द्वारा दिये गये वक्तव्य के संदर्भ में मध्यप्रदेश शासन की ओर से स्थिति स्पष्ट करते हुये 15 दिन में प्रतिवेदन देने को कहा है। जिससे उसी अनुरूप अग्रिम कार्यवाही की जा सके।     

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने पांच मामलों में संज्ञान लिया है। आयोग के माननीय सदस्य मनोहर ममतानी ने यह संज्ञान लेकर संबंधित विभागाधिकारियों से समय-सीमा में जवाब मांगा है।

पहला मामला भोपाल का है।

गोविंदपुरा इंडस्ट्रियल एरिया काम करने वालों को बेहतर इलाज मुहैया कराने करीब एक साल पहले तैयार योजना बनी थी। इसके तहत भवन तो बन गया, लेकिन इलाज अबतक मुहैया नहीं हो पा रहा है। लोगों का करीब दो किमी दूर सरकारी अस्पताल जाना पड़ रहा है। गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र में करीब 30 हजार श्रमिक रहते हैं। आसपास स्लम एरिया है जहां करीब दस हजार की आबादी निवास करती है। इलाज के नाम पर सुविधा की बात करें तो करीब 2 किलोमीटर दूर बीमा अस्पताल है। कारखानों में प्राथमिक चिकित्सा सुविधा तो होती है, लेकिन अस्पताल नहीं है। मामले में आयोग ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, भोपाल से 15 दिन में जवाब मांगा है।

दूसरा मामला रायसेन का है।

यहां नगर पलिका द्वारा एक जिंदा महिला ताराबाई पति स्व. सूरज सिंह भदौरिया वार्ड 13 को मृत बताकर उसकी वृद्धावस्था पेंशन बंद करा देने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। ताराबाई जब पंजाब नेशनल बैंक पेंशन की राशि निकलने पहुंची, तो पता चला कि नगर पालिका के एक पत्र के तारतम्य में उनकी पेंशन बंद कर दी गई है। अब यह विधवा वृ़द्ध महिला खुद को जिंदा साबित करने के लिए दर-दर भटक रही है। ताराबाई के सारे दस्तावेज भी दोबारा नगरपालिका में जमा करा दिये गये हैं लेकिन ताराबाई को पेंशन शुरू नहीं हो पाई है। मामले में आयोग ने कलेक्टर रायसेन से 15 दिन में जवाब मांगा है। आयोग ने कलेक्टर से कहा है कि वृद्ध महिला को देय विधवा/वृद्धावस्था पेंशन को प्रारंभ करायें साथ ही वृद्धावस्था पेंशन बंद करने में शामिल त्रुटिकर्ता नगरपालिका रायसेन के कर्मचारियों पर भी नियमानुसार दण्ड कार्यवाही करवायें।

तीसरा मामला विदिशा जिले का है।

बासौदा शहर से कोई 2 किलोमीटर दूर चैरावर रोड पर मृत जानवरों को गौवंश नहीं नगर पालिका द्वारा फेंका जा रहा है जिससे वहां से गुजरने वाले राहगीरों एवं आसपास के किसानों को दुर्गंध का सामना करना पड़ रहा है। चैरावर क्षेत्र में त्रेशर खदान हैं यहां पर सौ लेबर काम करती है। इसके अलावा इस गांव से स्कूली बच्चे शहर के लिए पढ़ने जाते हैं दर्जनों डंपर ट्रैक्टर ट्राली यहां से गुजरती हैं इस स्थान से गुजरने पर उनकी हालत बिगड़ती है और आसपास के किसानों को जो फसल में पानी देते हैं या कटाई के टाईम पर उनको भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है बीमार होते रहते हैं। मामले में आयोग ने कलेक्टर, विदिशा से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है।

चौथा मामला छतरपुर जिले का है।

यहां के बीजावर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत शाहगढ़ के पीड़ित गोकुल अहिरवार द्वारा बताया गया कि उसे सन 1998 में शासन द्वारा कृषि भूमि के लिए पट्टा दिया गया था, किंतु आज दिनांक तक वह जमीन में खेती नहीं कर पा रहा है। इस संबंध में सात माह पूर्व उसके द्वारा राजस्व विभाग की शिकायत सीएम हेल्पलाईन में भी की गई थी, जिसका आज तक निराकरण नहीं हुआ। वह दर-दर भटक रहा है। मामले में आयोग ने कलेक्टर, छतरपुर से एक माह में जवाब मांगा है।

पांचवा मामला गुना जिले का है।

राघौगढ़ तहसील के अनंतपुर मोईया गांव में पीने के पानी के लिए हैंडपेंप नहीं है। कच्ची सड़क पर चलना मजबूरी है। बारिश में इस रास्ते को देखकर लोग घरों में कैद हो जाते हैं। ग्रामीणों का दर्द है कि हम यहां तीन पीढ़ियों से रह रहे हैं। हमारे यहां मेहमान भी नहीं आते हैं, अभी भी लोग इस गांव में आने घबरा रहे हैं। गांव में युवाओं की शादी नहीं हो पा रही है। जिनकी शादी हुई, उनकी पत्नी भी ससुराल आने को तैयार नहीं है। यह गांव आरोन-राघौगढ़ रोड के बीच दूर बसा है। मामले में आयोग ने कलेक्टर, गुना से एक माह में जवाब मांगा है।

थाना प्रभारी की पुनः विभागीय जांच की जाये, दण्ड भी दिया जाये

आयोग ने की अनुशंसा

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने एक मामले में पुलिस थाना प्रभारी/उपनिरीक्षक के विरूद्ध विभागीय जांच की कार्यवाही पुनः करने और उसे विभागीय प्रक्रिया के पालन में की गई उपेक्षा की तुलना में युक्तियुक्त दण्ड देने की अनुशंसा की है। मामला गुना जिले का है। आयोग को 23 सितम्बर 2020 को एक शिकायती आवेदन मिला। आयोग ने प्रकरण क्रमांक 5691/गुना/पुलिस/2020 दर्ज कर लिया। आवेदन में हनुमान चैराहा, थाना मृगवास, निवासी आवेदिका श्रीमती जाईदा बानो ने लिखा कि उसके पति खुशी खां को मृगवास थाना पुलिस द्वारा जबरन उठाकर ले जाने और थाने में बैठाकर रखने की शिकायत की। मामले में पुलिस अधीक्षक, गुना का कहना है कि थाना प्रभारी मृगवास दीपक चैरसिया को पास्को एक्ट के आरोपी सादिक खां के खुशी खां के घर पर रूके होने की सूचना मिलने पर खुशी खां को पूछताछ के लिये 16 सितम्बर 2020 को थाने पर बुलाया गया था एवं पूछताछ के बाद मेडिकल कराने के उपरांत उसे रवाना किया गया। इसकी रोजनामचा में तो रिपोर्ट दर्ज है, परन्तु केस डायरी में पर्चा दर्ज नहीं किया जाना पाया गया। आयोग द्वारा मामले की निरंतर सुनवाई की गई। अन्ततः आयोग ने पाया कि थाना मृगवास, जिला गुना में सीसीटीवी कैमरे स्थापित नहीं है। पुलिस मुख्यालय, भोपाल से सीसीटीव्ही लगाये जाने की जानकारी लेने पर यह बताया गया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में मध्यप्रदेश के थानों/चैकियों में सीसीटीवी आधारित निगरानी व्यवस्था करने हेतु आदेश फार्म टेलीकम्युनिकेशन कंसलटेंट इंडिया लिमिटेड को जारी किया गया है। मानव अधिकार आयोग, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 18 के अंतर्गत जहां जांच में किसी लोक सेवक द्वारा मानव अधिकारों का अतिक्रमण या मानव अधिकारों के संरक्षण में उपेक्षा पाई जाती है तो ऐसे प्रकरणों में पीड़ित व्यक्ति या उसके कुटुंब के सदस्य को क्षतिपूति देने की तथा अन्य अनुशंसा राज्य शासन या संबंधित पदाधिकारियों को कर सकता है। चूंकि 16 सितम्बर 2020 को बिना धारा 160 सीआरपीसी का नोटिस दिये खुशी खां को थाने पर बुलाया जाना पाया गया और इस प्रकरण में विवेचना अधिकारी के न होने के बावजूद भी बुलाना पाया गया। पुलिस अधीक्षक, गुना द्वारा इस कृत्य के लिये उप निरीक्षक दीपक भदौरिया को सेवा पुस्तिका में निंदा की सजा से दंडित किया गया है, जो कि उसके द्वारा किये गये कृत्य की तुलना में काफी कम है। अतः मप्र मानव अधिकार आयोग ने अनुशंसा की है कि उप निरीक्षक दीपक भदौरिया के विरूद्ध विभागीय जांच की कार्यवाही पुनः स्थापित की जाये और उसके द्वारा विभागीय प्रक्रिया के पालन नहीं करने/उपेक्षा करने की तुलना में युक्तियुक्त दण्ड शास्ति लगाई जाये। 

 

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