मप्र मानव अधिकार आयोग ने तीन मामलों में दिया संज्ञान

खबर नेशन / Khabar Nation 

मृतक बंदी के वैध वारिसों को पांच लाख रूपये एक माह में दे दें
बंदियों की नियमित व अनिवार्य जांचें गंभीरतापूर्वक करायी जायें
आयोग ने राज्य शासन को की अनुशंसा

मप्र मानव अधिकार आयोग ने यहां प्रचलित तीन प्रकरणों में समवेत् रूप से राज्य शासन को अहम अनुशंसाएं की हैं। आयोग ने राज्य शासन से कहा है कि बंदियों की नियमित व अनिवार्य जांचें गंभीरतापूर्वक करायी जायें। जेलों में स्वास्थ्य सेवाएं, जिसमें चिकित्सक, कम्पाउण्डर एवं पैरा मेडिकल स्टाफ शामिल है, के रिक्त पदों की पूर्ति सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर की जाये। जेलों में संविदा पर पदस्थ चिकित्सकों का मानदेय स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत पदस्थ संविदा चिकित्सकों से समान करने एवं उन्हें तीन वर्ष बाद पीजी में प्रवेश की सुविधा दिये जाने के जेल विभाग के प्रस्ताव पर शीघ्र कार्यवाही सुनिश्चित की जाये। आयोग ने प्रकरण क्र. 5155/इंदौर/2017, प्रकरण क्र. 9387/गुना/2018 एवं प्रकरण क्र. 6313/उज्जैन/2019 में यह अनुशंसायें की हैं। उज्जैन जिले के प्रकरण में आयोग ने अतिरिक्त अनुशंसा करते हुये राज्य शासन से कहा है कि जेल प्रबंधन एवं जेल डाक्टर की उपेक्षा व समुचित उपचार न कराने के कारण मृतक बंदी रामविलास पिता भुजराम के वैध वारिसों को पांच लाख रूपये क्षतिपूर्ति राशि एक माह में दे दी जाये।
इन तीनों ही प्रकरणों में मप्र मानव अधिकार आयोग ने जांच में यह पाया कि बंदियों के जेल में प्रवेश के दौरान उनकी अनिवार्य स्वास्थ्य जांचें न कराये जाने के कारण बंदियों की शारीरिक स्थिति बिगड़ती गई और अंततः उपचार के दौरान तीनों ही मामलों में बंदियों की असमय मृत्यु हो गई। आयोग ने पाया कि बंदियों की स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रति जेल प्रबंधन की घोर लापरवाही और उनका वांछित/समुचित उपचार न कराये जाने के कारण ही यह स्थिति निर्मित हुई। अतः बंदियों की नियमित व अनिवार्य जांचें अति गंभीरतापूर्वक एवं पूरी जिम्मेदारी के साथ करायी जायें।

सुदामा के मानव अधिकारों का हनन हुआ
राज्य शासन बीस हजार रूपये एक माह में भुगतान करें
आयोग ने राज्य शासन को की अनुशंसा

मप्र मानव अधिकार आयोग ने जबलपुर जिले के एक मामले में आवेदक की पत्नी श्रीमती सुदामा तिवारी के मानव अधिकारों का हनन होना पाया। इस पर आयोग ने राज्य शासन को श्रीमती सुदामा को बीस हजार रूपये क्षतिपूर्ति राशि एक माह में भुगतान करने को कहा है।
आयोग ने यह भी कहा है कि पेंशनर को हायर ट्रीटमेंट सेंटर या शासकीय अस्पताल द्वारा प्रिस्क्राइब्ड दवा/औषधि यदि मध्यप्रदेश पब्लिक हेल्थ कॅारपोरेशन लिमिटेड में एमपी औषधि पोर्टल पर उपलब्ध नहीं हो पाती, तो नियमानुसार उसे स्थानीय बाजार से क्रय कर मरीज को कम से कम अवधि में उपलब्ध कराया जाना सुनिश्चित किया जाये। बजट के अभाव के कारण पेंशनर के इलाज व उपचार में रूकावट न आये, इस हेतु राज्य शासन अपने वैधानिक दायित्व अन्तर्गत शासकीय अस्पतालों में पर्याप्त बजट उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जाये।  
मप्र मानव अधिकार आयोग ने प्रकरण क्र. 0096/जबलपुर/2021 में यह अनुशंसा की है। इस मामले में पीडिता के पति (आवेदक) रामनरेश तिवारी ने आयोग में आवेदन लगाया था कि उसे 16 हजार रूपये पेंशन मिलती है। उसकी पत्नी सुदाम तिवारी का ओपन हार्ट सर्जरी में वॅाल्व बदला गया था। मई 2020 में दो और वॅाल्व खराब हो गये। इलाज मेडिकल कॅालेज/सुपर स्पेशिलिस्ट में चल रहा है। इन्होंने जो दवाईयों की सूची दी है, वे अस्पताल में नहीं मिल रहीं। इससे उन्हें कर्ज लेकर इलाज कराना पड़ रहा है। अतः उनकी पत्नी के इलाज के लिये उन्हें अत्यंत आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। उन्हें न्याय दिलाया जाये। आवेदन मिलते ही आयोग ने मामला दर्ज कर अधीक्षक, मेडिकल कॅालेज जबलपुर से प्रतिवेदन मांगा। आयोग द्वारा मामले की निरंतर सुनवाई की गई। अंततः यह अंतिम अनुशंसायें की गयी हैं।

 

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