600 से ज्यादा प्रसूतायों को अब तक नहीं मिला संबल योजना का लाभ

खबर नेशन / Khabar Nation  

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के माननीय अध्यक्ष मनोहर ममतानी एवं माननीय सदस्य राजीव कुमार टंडन ने चार मामलों में स्वतः संज्ञान लेकर संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा है।
मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने
राज्य सरकार की संबल योजना की पात्र प्रसूताओं को मिलने वाली 16000 रूपये की सहायता राशि का भुगतान दो माह बाद भी नहीं होने संबंधी एक विस्तृत मीडिया रिपोर्ट पर संज्ञान लिया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भोपाल शहर में ही 600 से ज्यादा प्रसूतायें ऐसी हैं, जिनका भुगतान वेरिफिकेशन न होने के कारण दो माह से अटका हुआ है। दसअसल प्रसूता के परिवार की संपूर्ण जानकारी आंगनबाड़ी की आशा और उषा कार्यकर्ता टेबलेट के जरिये ऑनलाईन सबमिट करती हैं। लेकिन इनके द्वारा श्रमिक स्टेटस बाद में अपडेट होगा, यह बोलकर खाली छोड़ दिया जाता है। इसके चलते प्रसूताओं को मिलने वाली सहायता राशि अटक जाती है। क्योंकि श्रमिक का वेरिफिकेशन अनमोल पोर्टल पर नजर ही नहीं आता है। मामले में आयोग ने आयुक्त, स्वास्थ्य सेवायें, मप्र शासन, भोपाल एवं अधीक्षक, सुल्तानिया जनाना अस्पताल, भोपाल से प्रकरण की जांच कराकर तीन सप्ताह में प्रतिवेदन मांगा है।

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने भोपाल शहर के वार्ड क्रमांक 18 में 73 साल पुराने इसरानी मार्केट की 15 साल से जर्जर सड़क से रोजना गुजरने वाले करीब 3000 लोगों के भारी परेशान होने संबंधी एक मीडिया रिपोर्ट संज्ञान लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक सड़क इतनी खराब है कि धूल उड़ने के कारण लोग बीमार होने लगे हैं। नगर निगम को भी शिकायत की गई लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। इलाके का सीवेज सिस्टम भी ध्वस्त हो गया है, इस कारण गंदा पानी सड़क पर आ जाता है। मामले में आयोग ने कमिश्नर, नगर निगम, भोपाल से प्रकरण की जांच कराकर तीन सप्ताह में प्रतिवेदन मांगा है।

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने ग्वालियर जिले में सात साल की एक मासूम बच्ची के साथ दुराचार कर उसे मार देने और शव को जला देने की एक दिल दहला देने वाली घटना पर संज्ञान लिया है। बच्ची बीते सोमवार से लापता थी। उसका जला हुआ शव मंगलवार की रात मिला। मृत बच्ची की पहचान उसके परिजनों ने बच्ची के शरीर पर पाये गये कपड़ों के अवशेषों से की। घटना को अंजाम देने वाले संगीन अपराधी को गिरफ्तार किया जा चुका है। इस गंभीर मामले में आयोग ने पुलिस अधीक्षक, ग्वालियर से जवाब-तलब किया है।

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने शिवपुरी जिले में जिला पत्रकार एशोसियेशन के अध्यक्ष जयपाल जाट पर पुरानी रंजिश के चलते आरोपियों द्वारा जानलेवा हमला करने की घटना पर संज्ञान लिया है। शिवपुरी जिले के पत्रकारों ने आरोपियों पर सख्त कार्यवाही करने की मांगकर एक ज्ञापन भी एसपी को सौंपा है। मामले में आयोग ने पुलिस अधीक्षक, शिवपुरी से जवाब-तलब किया है।

पीड़ित शिकायत करे, तो पुलिस का दायित्व है कि वह एफआईआर दर्जकर विधिनुसार शिकायत का निवारण करे
आयोग ने की अनुशंसा

मप्र मानव अधिकार आयोग ने राज्य शासन से अनुशंसा की है कि पुलिस थानों/चैकियों पर जब कोई पीड़ित व्यक्ति शिकायत लेकर आये और यदि वह संज्ञेय अपराध की श्रेणी का है, तो पुलिस का यह पहला दायित्व है कि वह शिकायतकर्ता की शिकायत पर एफआईआर दर्जकर अपराध भी पंजीबद्ध करे और उसका विधि के अनुसार निराकरण करे। आयोग ने यह भी कहा है कि यदि पुलिस द्वारा एफआईआर तो लिखी गई, पर अपराध पंजीबद्ध नहीं किया गया, तो भी ऐसे आवेदन पत्र की प्राप्ति को पुलिस थानों/चैकियों पर इस हेतु संधारित विशेष पंजी में दर्जकर पावती शिकायतकर्ता को दी जाये। राज्य शासन यह भी सुनिश्चित करे कि यदि शिकायतकर्ता का आवेदन विशेष पंजी में पंजीबद्ध कर लिया जाये, तो उसके बाद आवेदन का अंतिम निराकरण कर इसकी सूचना शिकायतकर्ता को भी दी जाये, जिससे शिकायतकर्ता अन्य विधिक उपचार/सहायता प्राप्त करने के लिये स्वतंत्र रहे और पुलिस थानों/चैकियों में भी कार्यवाही की पारदर्शिता बनी रहे। मामला भोपाल जिले का है। आयोग के प्रकरण क्रमांक 6571/भोपाल/2020 के अनुसार शिकायतकर्ता हिम्मतसिंह ने आयोग में शिकायत की थी कि स्वयं उसके व उसीके भतीजे राहुल के साथ पुलिस चैकी ललरिया, थाना बैरसिया, जिला भोपाल के आरक्षक बुंदेलसिंह और दीपक सोनी ने उनके साथ बुरी तरह मारपीट की और उनकी मोटर साईकिल भी क्षतिग्रस्त कर दी। आयोग ने आईजी भोपाल से जांच करवाई। उन्होंने प्रतिवेदन दिया कि ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं। आयोग ने मामले की निरंतर सुनवाई की और अंततः मामले की गंभीरता को देखते हुये राज्य शासन को उपरोक्त तीन अनुशंसाएं कर इनका पालन प्रतिवेदन भेजने को कहा है।

दण्डित बंदी की मौत पर उसके वारिसों को पांच लाख रूपये दो माह में दे दें
आयोग ने की अनुशंसा

मप्र मानव अधिकार आयोग ने केन्द्रीय जेल, ग्वालियर में सजा काट रहे दंडित बंदी कामता उर्फ कमलकांत की जेएएच ग्वालियर में उपचार के दौरान मृत्यु हो जाने के मामले में मृतक के वैध वारिसों को पांच लाख रूपये क्षतिपूर्ति राशि दो माह में दे देने की अनुशंसा राज्य शासन को की है। आयोग के प्रकरण क्रमांक 6121/ग्वालियर/2020 के अनुसार दंडित बंदी की मृत्यु की घटना 12 अक्टूबर 2020 को हुई थी। दंडित बंदी कामता उर्फ कमलकांत की तबीयत अक्सर खराब रहती थी। उसका निरंतर इलाज भी चलता रहा उसे टीबी और लीवर की बीमारी थी। उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई थी। आयोग ने अपनी जांच में पाया कि केन्द्रीय जेल प्रबंधन द्वारा दंडित बंदी की समुचित देखभाल एवं उपचार में घोर लापरवाही बरती गई। इससे उसकी मौत हो गई। जबकि जेल में दाखिल होने के समय वह अमूमन स्वस्थ था। इस पर आयोग ने मृतक के वैध वारिसों के पांच लाख रूपये दो महीने में अदा करने की अनुशंसा की है। साथ ही यह भी कहा है कि जेल में दाखिल होने के बाद से ही बंदी का डाॅक्टरी परीक्षण कराया जाये। समस्त प्रकार की जांचें भी कराई जायें। नियमित समय अंतराल में पुनः जांचें कराई जायें। साथ ही केन्द्रीय जेल ग्वालियर में रिक्त पदों की शीघ्र प्रतिपूर्ति कर ली जाये जिससे बंदियों को समुचित उपचार मिले और उनके मौलिक/मानव अधिकारों का संरक्षण भी हो सके।                                              
दण्डित बंदी की मौत पर उसके वारिसों को पांच लाख रूपये दो माह में दे दें
आयोग ने की अनुशंसा

मप्र मानव अधिकार आयोग ने केन्द्रीय जेल, ग्वालियर में सजा काट रहे दंडित बंदी टल्ली उर्फ वृंदावन की जेएएच ग्वालियर में उपचार के दौरान मृत्यु हो जाने के मामले में मृतक के वैध वारिसों को पांच लाख रूपये क्षतिपूर्ति राशि दो माह में दे देने की अनुशंसा राज्य शासन को की है। आयोग के प्रकरण क्रमांक 6761/ग्वालियर/2020 के अनुसार दंडित बंदी की मृत्यु की घटना एक नवंबर 2020 को हुई थी। जेल प्रबंधन द्वारा दंडित बंदी टल्ली उर्फ वृंदावन का निरंतर इलाज कराया जा रहा था। सतत् रूप से जारी इलाज और उपचार के दौरान एक नवंबर 2020 को उसकी मौत हो गई थी। डॉक्टर ने उसकी मौत का कारण फेफड़ों में विकृति एवं संक्रमण से हृदय एवं श्वसन तंत्र प्रणाली का फेल हो जाना बताया था। आयोग ने अपनी जांच में पाया कि केन्द्रीय जेल प्रबंधन द्वारा दंडित बंदी की समुचित देखभाल एवं उपचार में घोर लापरवाही बरती गई थी। इससे उसकी मौत हो गई। जबकि बयान देने वाले डॉक्टर के मुताबिक जेल में दाखिल होने के समय टल्ली उर्फ वृंदावन स्वस्थ था। इसपर आयोग ने मृतक के वैध वारिसों के पांच लाख रूपये दो महीने में अदा करने की अनुशंसा की है। यह भी कहा है कि जेल में दाखिल होने के बाद से ही बंदी का डॉक्टरी परीक्षण कराया जाये। सभी प्रकार की जांचें भी कराई जायें। नियमित समय अंतराल में पुनः जांचें कराई जायें। साथ ही केन्द्रीय जेल ग्वालियर में रिक्त पदों की शीघ्र पूर्ति कर ली जाये, जिससे बंदियों को उपचार मिले और उनके मौलिक/मानव अधिकारों का संरक्षण भी हो सके।

आवेदक को पच्चीस हजार रूपये क्षतिपूर्ति राशि दो माह में दे दें
आयोग ने की अनुशंसा

मप्र मानव अधिकार आयोग ने शिकायतकर्ता आवेदक अभिषेक पाण्डेय द्वारा की गई शिकायत पर संज्ञान लेकर पुलिस द्वारा आवेदक के साथ की गई मारपीट और गाली-गलौच की घटना पर राज्य शासन को शिकायतकर्ता को पच्चीस हजार रूपये क्षतिपूर्ति राशि दो माह में दे देने की अनुशंसा राज्य शासन को की है। मामला सीहोर जिले का है। घटना 15 नवंबर 2021 की है। शिकायतकर्ता अभिषेक पाण्डेय ने आयोग में लिखित शिकायत की थी कि 15 नवंबर 2021 को थाना कोतवाली सीहोर के उपनिरीक्षक मनोज मालवीय व दो अन्य आरक्षक पूछताछ का कहकर उसे उसके घर थाने ले गये थे। उसे रातभर थाने में रखा और पानी और खाना तक नहीं दिया। अगले दिन ये लोग आवेदक से उसके रिश्तेदारों के नाम पूछने लगे और मात-पिता के बारे में भी बताने को कहा। उसने जानकारी नहीं दी तो उपनिरीक्षक और दोनों आरक्षकों ने प्लास्टिक के डंडो उसके साथ मारपीट की और गाली-गलौच भी की। उसी दिन शिकायतकर्ता की बहन को बुलाया गया और तब पीडित को छोड़ा गया। शिकायतकर्ता ने जिला चिकित्सालय सीहोर में भर्ती रहकर अपना इलाज कराया। उसके इलाज के दौरान ही थाना प्रभारी कोतवाली सीहोर भी आ गये और जिला अस्पताल सीहोर में हुये इलाज के कोई भी पर्चे पीड़ित पक्ष को नहीं लेने दिये। आवेदक ने आयोग में उसे अवैध अभिरक्षा में रखकर मारपीट और प्रताड़ित किये जाने की शिकायत कर आरोपियों पर समुचित कार्यवाही करने की मांग की थी। आयोग ने प्रकरण क्रमांक 8779/सीहोर/2021 दर्जकर मामले की निरंतर सुनवाई की और शिकायतकर्ता की शिकायत को पूर्णतः सत्य पाया। अंततः राज्य शासन को अनुशंसा की है कि शिकायतकर्ता अभिषेक पाण्डेय को पच्चीस हजार रूपये क्षतिपूर्ति राशि दो माह में दे दी जाये। राज्य शासन चाहे, तो दोषी लोकसेवकों से यह राशि वसूल कर सकता है। मालूम हो कि इस मामले में दोषी उपनिरीक्षक मनोज मालवीय को पुलिस अधीक्षक सीहोर द्वारा संस्पेंड कर दिया गया था।

विचाराधीन बंदी की मौत पर उसके वारिसों को पांच लाख रूपये दो माह में दे दें
आयोग ने की अनुशंसा

मप्र मानव अधिकार आयोग ने जिला जेल दमोह में विचाराधीन बंदी दुर्गेश पिता लखन राठौर की जिला अस्पताल दमोह में उपचार के दौरान मृत्यु हो जाने के मामले में मृतक के वैध वारिसों को पांच लाख रूपये क्षतिपूर्ति राशि दो माह में दे देने की अनुशंसा राज्य शासन को की है। आयोग के प्रकरण क्रमांक 1480/दमोह/2021 के अनुसार विचाराधीन बंदी की मृत्यु 21 फरवरी 2021 को हुई थी। जिला जेल प्रबंधन द्वारा विचाराधीन बंदी दुर्गेश का निरंतर इलाज कराया जा रहा था। जारी इलाज और उपचार के दौरान 21 फरवरी 2021 को उसकी मौत हो गई थी। डाॅक्टर्स ने फेफड़ों में पाये गये भारी संक्रमण, मृतक के दांये घुटने में मिली पुरानी अल्सर की चोटवश उसकी मौत होने की संभावना बताई गई थी। आयोग ने जांच में पाया कि जिला जेल प्रबंधन द्वारा विचाराधीन बंदी के उपचार में घोर लापरवाही की गई। इससे उसकी मौत हो गई। इसपर आयोग ने मृतक के वैध वारिसों के पांच लाख रूपये दो महीने में अदा करने की अनुशंसा की है। राज्य शासन चाहे, तो दोषी लोकसेवकों से यह राशि वसूल कर सकता है। यह भी कहा है कि जेल में दाखिल होने के बाद से ही बंदी का डॉक्टरी परीक्षण हो। सभी प्रकार की जांचें भी कराई जायें। समय अंतराल में पुनः जांचें कराई जायें। सुनिश्चित किया जाये कि मृतक की शव परीक्षण रिपोर्ट शीघ्र पुलिस को सौंप दी जाये। बिसरा व हिस्टोपैथोलॉजी जांचें भी तत्काल करा ली जायें।

 

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